श्री दत्तात्रेय प्रभुंचे १० वेष

🙏 दंडवत प्रणाम 🙏

श्री दत्तात्रेय प्रभुंचे १० वेष: १) रूषी वेष
२) बाल वेष
३) मातंग वेष
४) ब्राम्हण वेष
५) गोंधळी वेष
६) कुष्टी वेष
७) व्याघ्र वेष
८) अवधुत वेष
९) पारधी वेष
१०) दिगंबर वेष

शकोणत्या वेषाने कोणाला भेट दिली: १) रूषी वेष – सहस्त्रार्जुन
२) बालवेष – अनुसूया , पार्वती , लक्ष्मी ,सावित्री
३) मातंग वेष – अर्ळक राजा
४) ब्राह्मण वेष – रेणुकेचा निक्षेप करते वेळेसपरशुरामाला
५) गोंधळी वेष- डखले , चांगदेवभट
६) कुष्टी वेष – सप्त रूषी
७) व्याघ्र वेष – चक्रपाणि महाराज
८) अवधुत वेष – यदुराजा , मदाळसाराणी
९) पारधी वेष – परशुराम
१०) दिगंबर वेष – शंकराचार्य

🙏 जय श्री कृष्ण 🙏

🙏 दंडवत प्रणामनमो पंच कृष्ण अवतार

  • Author: Dandvat
  • Posted on: November 19, 2023 6:00 PM
  • Tags: Leela, Shree Dattatreya Prabhu, Panch Krishan Avatar

परशुराम जी को दर्शन
🙏 Dandvat Pranam 🙏

जय श्री चक्रधर स्वामी जी
श्रीचक्रधर स्वामी जी ने कहा एक दिन कार्तवीर्य (सहस्त्रार्जुन ) अपने सैनिक परिवारके साथ शिकारके लिए निकला । जंगलोंमें भटकते भटकते उसे प्यास लगी । उसका एक सेवक पानीकी खोजमें जमदाग्नि ऋषिके आश्रममें पहुँच गया । उस समय जमदाग्नि और उसकी पत्नी एकवीरा (रेणुका) दोनों चोसर खेल रहे थे । सेवकने उनसे कहा 'हमारा राजा प्यासा है, उसके लिए पानी चाहिए । ' एकवीराने अपने कानकी मैल निकाल कर उसकी एक बटलोई बनाई, पानीसे भरा और उस सेवकको दिया । सेवकने कहा, ' इतने पानीसे क्या होगा ? ' एकवीराने कहा, ' जाओ, पूरा हो जाएगा । ' लेकर जाते जाते वह बटलोई टूट गई और वहाँ पर पानी भरा एक सरोवर बन गया । तब राजा और उसके हाथी, घोड़े, सैनिक परिवार सहित सबकी प्यास मिट गयी ।
अब राजाको भूख लगी । उसके पास खानेके लिए कुछ भी शेष नहीं बचा था । उसने अपने सेवकको पुनः जमदाग्निके आश्रममें भेजा । उस सेवकने वहाँ जाकर कहा ' राजा भूखा है, उसके लिए भोजन चाहिए । ' एकवीराने कहा, ' जाओ, अपने हाथ-पाँव धोकर आओ, भोजन मिल जायेगा । ' एकवीराने स्वर्गसे इन्द्रकी कामधेनु गाय बुलायी । उस गायने अनेक प्रकारके पकवान तैयार कर दिए । राजा आया और परिवार सहित उसने भोजन किया । भोजन करनेके पश्चात राजाने कहा, 'ऐसे पकवान हमारे राज्यमें तो उपलब्ध नहीं हैं । एकवीरा बोली, ' ये सब पकवान इस गायसे प्राप्त हुए हैं । ' राजाने कहा, ' तो यह गाय हमें दे दो । ' वह बोली, ' यह इन्द्रकी कामधेनु है, तुम इसे ले जा सकते हो तो ले जाओ । ' राजा कामधेनुको पकड़कर ले जानेका प्रयत्न करने लगा तो गायने मल-मूत्र कर दिया, जिससे सैनिक, हाथी, और घोड़े उत्पन्न हो गये। दोनों पक्ष परस्पर जूझने लगे । राजा पराजित हो गया । उसने सोचा कि इस ब्राह्मणने यह सब कांड किया है इसलिए उसने जमदाग्नि ऋषि पर तलवारसे प्रहार किये । जमदाग्नि पर घातक प्रहार होते देख एकवीरा उस पर आ गिरी । उसपर भी राजाने अनेक प्रहार किये । राजा अपने सैनिक परिवारको लेकर चला गया । एकवीरा रोरोकर विलाप करने लगी । ' परशुराम दौड़कर आओ 'कहते हुए एकवीराने पुत्रको पुकारा । परशुराम उस समय कैलास पर्वत पर महादेवसे विद्या अध्ययन कर रहा था । एकवीराने जब पुकारा तो महादेवने उससे कहा, ' तुम्हारी माता पर विपत्ति आ गई है, वह तुम्हें बुला रही है ।' परशुराम कैलास पर्वत पर ही सारी घटनाका वृतांत जान चुका था । वहाँसे चलते समय वह प्रण करके निकला कि इस पृथ्वीको इक्कीस बार क्षत्रियरहित न कर दिया तो मेरा नाम परशुराम नहीं ।
जब परशुराम अपनी माता एकवीराके पास पहुँचा तो वह घायल हुई तड़प रही थी, जबकि जमदाग्नि घायल होकर प्राण त्याग चुका था । एकवीराने देह छोडनेसे पूर्व परशुरामसे कहा 'श्री दत्तात्रेयप्रभुजीको आचार्य बनाकर कोरीभूमिमें मेरा अंतिम संस्कार करना ।' परशुरामने पूछा ' श्रीदत्तात्रेयप्रभुजीको मैं कैसे पहिचानूँगा ?' 'उनके दर्शन होते ही सूखे काष्टकी बहँगी(काँवर)में से अंकुर निकल आयेंगे ' इतना कहकर माता एकवीराने देहत्याग कर दिया ।
परशुरामने माता-पिताके शरीरोंको एक काँवर (बहँगी)के दोनों ओर रखा और उसे कंधो पर लिए वन-उपवन, पर्वत-पहाड़ चारों ओर बहुत घूमा । अंतमें जब वह सह्याद्रि पर्वत पर पहुंचा तो उसे सामनेकी ओर से श्रीदत्तात्रेयप्रभुजी शिकारी(पारधी) वेशमें आते हुए दिखाई दिये । उन्होंने छपाई वाला रेशमी वस्त्र कमर (कटिप्रदेश)में धारणकर रखा था । बायें श्रीकरमें शिकारी कुत्तोंकी जोड़ी और बगलमें घटिका पात्र, दायें श्रीकरमें माँस और सुराकी सुराही, श्रीमुकट पर रस्सीसे बनी टोपी, श्री चरणोंमें दोतल्ले पादत्राण धारणकर रखे थे । उनके साथ एक महिला थी । वह छापे हुए रेशमी वस्त्रकी आगेकी ओर चुन्नट डाले साड़ी(लुगड़ा) और उसीके साथकी चोली पहिने थी । चोलीकी बाजुओंमें गाँठे लगी थीं । उसके केश खुले थे और पाँवोंमें चप्पल पहिने थी। परशुरामने उन्हें देखा तो उसके सुखे काष्ठकी काँवडमें अंकुर नीकल आये । उसने काँवड़ नीचे रख दी और उन्हें दंडवते डालीं । परंतु श्रीदत्तात्रेयप्रभुजी उसे मना करते रहे यह क्या ? तुम ऋषिपुत्र हो, और हम पारधी हैं । यह कहकर श्रीदत्तात्रेयप्रभुजी बारबार निराकरण करते रहे । परशुराम विनीत भावसे प्रार्थना करता रहा । श्रीदत्तात्रेयप्रभुजी विनती स्वीकार नहीं कर रहे थे । साथमें जो आउसा थीं उन्होेंने विनतीकी तब श्रीदत्तात्रेयप्रभुजीने परशुरामकी प्रार्थना स्वीकार की । उसके पश्चात श्रीदत्तात्रेयप्रभुजीने कहा ' परशुराम एकवीराको स्नान करानेके लिए सर्व तीर्थोंसे जल लाना होगा ।' परशुरामने विनती की ' जी जी! आपके श्रीचरणोंमें ही सर्वतीर्थ हैं । '
तब श्रीदत्तात्रेय प्रभु जी ने एक स्थान पर चिन्ह लगाया और परशुराम से कहा ' यहाँ बाण मारो ।' परशुराम द्वारा बाण मारे जाने पर वहाँसे निर्मल पानीका झरना फूट पड़ा । श्रीदत्तात्रेय प्रभु जी ने उसमें अपने श्रीचरणका अंगूठा प्रक्षालन किया । इस प्रकार उस जल को सर्वतीर्थका महत्व प्राप्त करा दिया । श्री दत्तात्रेय प्रभु जीकी आज्ञासे परशुरामने उस पवित्र जल से माता एकवीराको स्नान कराया । फिर उनकी आज्ञा और आचार्यत्वमें कोरीभूमिमें माता एकवीराका अंतिम संस्कार कराया । श्री दत्तात्रेय प्रभु जी ने उस स्थान पर एक पाषाण रखवाकर सुरा(मद्य)से उसका अभिषेक (स्नान) किया और माँसका उपहार लिखाया । उस पाषाण प्रतिमाको ' भोग पाव ' (तेरा पूजन अर्चन होता रहे ) यह वर दिया।
महदाईसाजीने पूछा ' जी जी ! साथमें जो आउसा थी वह कौन थी ? ' श्रीस्वामीजीने कहा वह परमेश्वरकी मुख्य शक्ति मायामूर्ति थी।
जय श्री दत्तात्रेय प्रभु जी

🙏 जय श्री कृष्ण जी 🙏
स्वामींचा परिवार
🙏 Dandvat Pranam 🙏

जय श्री चक्रधर स्वामी जी
स्वामींचा परिवार तीन प्रकार चा होता: १) दर्शनीय ,
२) बोधवंत ( ग्यानी पुरूष तथा भक्त ),
३) अनुसरलेला एकून स्वामीचा परिवार १३५ होता . तो येणे प्रमाणे

भक्त: १) पैठनची नागुबाई उर्फ बाईसा , २) वरंगलचे माघव भक्त ब्राह्मण .

बोधवंत (ग्यानी पुरूष): १) श्री नागदेवाचार्य २) शांतबाईसा ३) महादाईसा ४) म्हाइंभट ५) दायंबा ६) देमाईसा ७)छर्दोबा ८) खेईगोई ९) गोईबाई १०)जोनोउपाध्ये ११)नीळभट भांडारेकार १२) नाथोबा १३)चांगदेव भट ,

अनुसरलेली: १) भट (नागदेवाचार्य ) २) नीळभट ३) शांताबाईसा ४)महादाईसा ५) म्हाइंभट ६) साधा ७) आऊसा ८) आबाईसा ९) नाथोबा १०)पोमाईसा ११) खेईबाईसा १२) गोईबाईसा .

दर्शनीय: १) रामदेव विद्यावंत वडनेतर २) सारंग पंडित ३) इंद्रभट ४) संतोष ५)अवडळभट. ६) अवघूत ७) मार्तंड ८) परसनायक ९)प्रद्न्यासागर १०) माइताहरी ११)घुईनायक १२) रेनाईक १३) गदोनायक १४)पद्मनाभी १५) नागदेव उपाध्ये १६)राके लक्छमींद्रभट १७) काकोस. १८)आनो १९) खळो २०) गोंदो २१) जपिय विष्णुभट २२) भ्रिंगी २३) वैजोबा २४) काळदासभट २५)वामन. २६)मतिविळासभट २७)नागनायक ( डोमेग्राम ) २८) भाईदेव २९) उपासनीये ३०) काळबोटे ३१) साईदेव ३२) कान्हो उपाध्ये ३३) काळेवासनायक ३४) गोरे जानोपाध्ये ३५) एकाईसे दोन ३६) देमाईसा ३७) लखुबाईसा ३८)सोभागा ३९) यल्हाइसा ४०) भूतानंद ४१) सामकोसे ४२) ललीताइसा ४३) एकाविराबाईसा ४४) द्रविळाबाईसा ४५) रत्नमाणिका ४६) आबयो ४७) माळी ( वडेगाव ) ४८) कमळनायक ४९) राणाइसा ( रामदेव विद्यावंताची माता ) ५०) तथा रामदेवाची शिष्या राणाइसा ५१) वामदेव पैठणकर ५२ ) बोनुबाया ५३) मेहकरकर बोनु बाइया ५४) प्रंपच विस्मृति घाटे हरिभट ५५) तिवाडी ५६) तथा त्याची पत्नी ५७) ग्रह सारंगपाणी ५८) तथा त्याची माता ५९) महादेव पाठक ६०) महादेव रावसगावकर ६१) तिकवनायक हिरवळीकर ६२) वायनायक रावसगावकर ६३) राहिया ( पाटोदा ) ६४) गोविंदस्वामी ६५) सारस्वत भट बीडकर ६६) कनासीचा ब्राह्मण ६७) सिंदुर्जनाचा ब्राह्मण ६८)मोसोपवासिनी ६९) राघवदेव ७०) कुंडी कनहरदेव ७१) महादेवोराजा ७२) पाल्हाडांगिया ७३) कास्त हरिदेव पंडित ७४) गोपाळ पंडित पारधी निरोपनीचे ७५) साळीवाहन ७६) राऊत दोघे ७७) मातंग ७८) देईभट तांबुळ ग्रहनीचे ७९)भोग नारायण माय धुवा ८०) मायधुवा ८१) दाको ८२). गणपत आपयो सराळेकर ८३) सुयराची बाई ८४) गोवारीया ८५) पंचगंगा ब्राह्मण ८६) सुकिये जोगनायक ८७) पाठक ८८) यंत्राकार वासुनायक ८९) भाऊ तिकवनायक ९०) गुर्जर दोन्ही ९१) नागा राऊळ ९२) मुंजिया बहिनी ९३) छायागोपाळीची स्त्री ९४)मार्तंड विहिरीचा ब्राह्मण ९५) पाठक देगाऊबाई ९६) वरंगलकर हंसाबाई ९७) घोगरगावकर बाई ९८) धानाई अळजपुर ९९) रामदरणेयाची माता १००) मुक्ताबीई १०१) रोहेरीचा ब्राह्मण १०२) भोगनारायण ब्राह्मण १०३) ठाकूर मार्या १०४) मल्ल ( जोगवटा दान देणारा ) १०५) स्वामींनी ज्याला जोगवटा दिला तो ब्राह्मण १०६) नारोबा १०७) नांदेड येथील गोरक्छण ब्राह्मण १०८) हेडाऊ ( आऊसा जवळील डांगरेस नावाचा कुत्रा स्वामींचा भक्त होता )
श्रीचक्रधरार्पणम्

🙏 जय श्री कृष्ण जी 🙏