कामाख्या के निमित्त देह त्यागना

🙏 Dandvat Pranam 🙏

जय श्री चक्रपाणि प्रभु जी
कौलि नामक ग्राम में एक हट योगिनी रहा करती थी जिसका नाम था कामाख्या, उसने अपने सौन्दर्य तथा अपने हाव् भाव से अनेक साधु संतो को अपने तप मार्ग से प्रवृत्त किया था। श्री चक्रपाणि महाराज जी के सामर्थ की परिस्थिति सुन बह भी वह आ पहुंची। अपने रंग रूप और हाव् भाव से वो प्रभु जी पर डोरे डालने लगी। श्री चक्रपाणि महाराज जी ने ब्रह्मचर्य धारण किआ था और प्रभु जी अपनी गुफा में ही ध्यान लगाए बैठे थे। कामाख्या गुफा में प्रवेश करना चाहती थी परन्तु बह प्रभु जी द्वारा श्री दत्तात्रय प्रभु जी की दी हुई कसम के कारन अंदर ना जा सकी।
कामाख्या गुफा के भर से ही अनेक प्रकार की स्तुति और प्राथना करती रही और अपने हाव् भाव से कोशिश करती रही परन्तु कोई भी प्रभु जी असर न पड़ा और बह अपने मार्ग से हुए। इसी प्रकार ७ दिन बिट गए और कामाख्या गुफा के दरवार में बैठी रही। अंत में श्री चक्रपाणि जी ने योग सामर्थ्य से अपना देह त्याग दिया। सातवे दिन कामाख्या ने गुफा में प्रवेश किआ तो देखा की प्रभु जी अपना शरीर छोड़ चुके थे। प्रभु जी की प्रसंशा करते हुए उसने खा की अनेक प्रकार के महा पुरषो को अपने वश करा मेने किन्तु प्रभु जी सामर्थ्यवान थे अंत अपने शरीर का त्याग किया।
जय श्री चक्रपाणि महाराज जी

🙏 जय श्री कृष्ण जी 🙏

🙏 दंडवत प्रणामनमो पंच कृष्ण अवतार

  • Author: Dandvat
  • Posted on: November 5, 2023 6:00 PM
  • Tags: Leela, Shree Chakrapani Prabhu, Panch Krishan Avatar

सबको अपने जैसा जानो
🙏 Dandvat Pranam 🙏

जय श्री चक्रधर स्वामी जी
नियमानुसार एक दिन आश्रमकी देखभाल आउसा कर रही थी । एक कुत्तेको आया देखकर उसने उसे पत्थर मारा । पत्थर लगते ही कुत्ता चिल्लाता हुआ पूँछ दबाकर बाहरकी ओर भाग गया । कुत्तेका रोना था कि उधर भगवान् दोनों हाथोंमें अपना मस्तक थामकर बैठ गये ।
भगवानको श्रीमुकुट थामे देख आउसाका रंग उड गया । वह भागकर उनके पास जा पहुँची । उसने अकुलाकर खिन्न मनसे पूछा - 'महाराज! मैंने मारा तो कुत्तेको है, आप कयों मस्तक थामकर बैठ गये हैं ?'
भगवानने समझाया - 'आउसा ! ईश्वरस्वरूप सर्वत्र व्यापक है। किसी जीव पर किये प्रहारका इसीलिये वह अनुभव करता है। तुमने उस प्राणीको पत्थर मारा, उसकी पीड़ा हमें हुई, इसीलिए हमने मस्तक थाम लिया।' फिर उन्होंने कुछ थमकर पूछा - 'बताओ तो तुमने उसे मारा कयों है ?'
आउसाने उत्तर दिया, 'महाराज! कल यही कुत्ता नागदेवके भिक्षान्नकी झोली उठा ले गया था । आज यह पुनः कुछ उठानेकी नीयतसे आया था । यदि मैं इसे न मारती, तो यह अवश्य ही आज भी कुछ ले भागता । अतः मैंने उसे समुचित दंड दिया है , तो कोई अपराध नहीं किया ।'
भगवानने कहा, 'आउसा ! मनुष्यके समान इसे पकाकर खिलानेवाला तो कोई है नहीं, जहाँ जाकर यह आरामसे खायेगा । इस बेचारेने तो इसी तरह घूम-फिरकर पेट भरना है । तुम अपनी चीजोंको सम्भालकर रखो, उसके लिए इसे क्यों दंडित करती हो ? यह तो खुद तुम्हारा दोष है । इस तरह वस्तुओंको असुरक्षित रखोगी, तो यह तो मुँह मारेगा ही ।'
भगवानके उदात्त विचारोंके आगे आउसा नतमस्तक हो गई और उसने *अपने अपराधकी क्षमा माँगकर पुनः वैसा न करनेकी प्रतिज्ञा ली।
जय श्री चक्रधर जी

🙏 जय श्री कृष्ण जी 🙏
परशुराम जी को दर्शन
🙏 Dandvat Pranam 🙏

जय श्री चक्रधर स्वामी जी
श्रीचक्रधर स्वामी जी ने कहा एक दिन कार्तवीर्य (सहस्त्रार्जुन ) अपने सैनिक परिवारके साथ शिकारके लिए निकला । जंगलोंमें भटकते भटकते उसे प्यास लगी । उसका एक सेवक पानीकी खोजमें जमदाग्नि ऋषिके आश्रममें पहुँच गया । उस समय जमदाग्नि और उसकी पत्नी एकवीरा (रेणुका) दोनों चोसर खेल रहे थे । सेवकने उनसे कहा 'हमारा राजा प्यासा है, उसके लिए पानी चाहिए । ' एकवीराने अपने कानकी मैल निकाल कर उसकी एक बटलोई बनाई, पानीसे भरा और उस सेवकको दिया । सेवकने कहा, ' इतने पानीसे क्या होगा ? ' एकवीराने कहा, ' जाओ, पूरा हो जाएगा । ' लेकर जाते जाते वह बटलोई टूट गई और वहाँ पर पानी भरा एक सरोवर बन गया । तब राजा और उसके हाथी, घोड़े, सैनिक परिवार सहित सबकी प्यास मिट गयी ।
अब राजाको भूख लगी । उसके पास खानेके लिए कुछ भी शेष नहीं बचा था । उसने अपने सेवकको पुनः जमदाग्निके आश्रममें भेजा । उस सेवकने वहाँ जाकर कहा ' राजा भूखा है, उसके लिए भोजन चाहिए । ' एकवीराने कहा, ' जाओ, अपने हाथ-पाँव धोकर आओ, भोजन मिल जायेगा । ' एकवीराने स्वर्गसे इन्द्रकी कामधेनु गाय बुलायी । उस गायने अनेक प्रकारके पकवान तैयार कर दिए । राजा आया और परिवार सहित उसने भोजन किया । भोजन करनेके पश्चात राजाने कहा, 'ऐसे पकवान हमारे राज्यमें तो उपलब्ध नहीं हैं । एकवीरा बोली, ' ये सब पकवान इस गायसे प्राप्त हुए हैं । ' राजाने कहा, ' तो यह गाय हमें दे दो । ' वह बोली, ' यह इन्द्रकी कामधेनु है, तुम इसे ले जा सकते हो तो ले जाओ । ' राजा कामधेनुको पकड़कर ले जानेका प्रयत्न करने लगा तो गायने मल-मूत्र कर दिया, जिससे सैनिक, हाथी, और घोड़े उत्पन्न हो गये। दोनों पक्ष परस्पर जूझने लगे । राजा पराजित हो गया । उसने सोचा कि इस ब्राह्मणने यह सब कांड किया है इसलिए उसने जमदाग्नि ऋषि पर तलवारसे प्रहार किये । जमदाग्नि पर घातक प्रहार होते देख एकवीरा उस पर आ गिरी । उसपर भी राजाने अनेक प्रहार किये । राजा अपने सैनिक परिवारको लेकर चला गया । एकवीरा रोरोकर विलाप करने लगी । ' परशुराम दौड़कर आओ 'कहते हुए एकवीराने पुत्रको पुकारा । परशुराम उस समय कैलास पर्वत पर महादेवसे विद्या अध्ययन कर रहा था । एकवीराने जब पुकारा तो महादेवने उससे कहा, ' तुम्हारी माता पर विपत्ति आ गई है, वह तुम्हें बुला रही है ।' परशुराम कैलास पर्वत पर ही सारी घटनाका वृतांत जान चुका था । वहाँसे चलते समय वह प्रण करके निकला कि इस पृथ्वीको इक्कीस बार क्षत्रियरहित न कर दिया तो मेरा नाम परशुराम नहीं ।
जब परशुराम अपनी माता एकवीराके पास पहुँचा तो वह घायल हुई तड़प रही थी, जबकि जमदाग्नि घायल होकर प्राण त्याग चुका था । एकवीराने देह छोडनेसे पूर्व परशुरामसे कहा 'श्री दत्तात्रेयप्रभुजीको आचार्य बनाकर कोरीभूमिमें मेरा अंतिम संस्कार करना ।' परशुरामने पूछा ' श्रीदत्तात्रेयप्रभुजीको मैं कैसे पहिचानूँगा ?' 'उनके दर्शन होते ही सूखे काष्टकी बहँगी(काँवर)में से अंकुर निकल आयेंगे ' इतना कहकर माता एकवीराने देहत्याग कर दिया ।
परशुरामने माता-पिताके शरीरोंको एक काँवर (बहँगी)के दोनों ओर रखा और उसे कंधो पर लिए वन-उपवन, पर्वत-पहाड़ चारों ओर बहुत घूमा । अंतमें जब वह सह्याद्रि पर्वत पर पहुंचा तो उसे सामनेकी ओर से श्रीदत्तात्रेयप्रभुजी शिकारी(पारधी) वेशमें आते हुए दिखाई दिये । उन्होंने छपाई वाला रेशमी वस्त्र कमर (कटिप्रदेश)में धारणकर रखा था । बायें श्रीकरमें शिकारी कुत्तोंकी जोड़ी और बगलमें घटिका पात्र, दायें श्रीकरमें माँस और सुराकी सुराही, श्रीमुकट पर रस्सीसे बनी टोपी, श्री चरणोंमें दोतल्ले पादत्राण धारणकर रखे थे । उनके साथ एक महिला थी । वह छापे हुए रेशमी वस्त्रकी आगेकी ओर चुन्नट डाले साड़ी(लुगड़ा) और उसीके साथकी चोली पहिने थी । चोलीकी बाजुओंमें गाँठे लगी थीं । उसके केश खुले थे और पाँवोंमें चप्पल पहिने थी। परशुरामने उन्हें देखा तो उसके सुखे काष्ठकी काँवडमें अंकुर नीकल आये । उसने काँवड़ नीचे रख दी और उन्हें दंडवते डालीं । परंतु श्रीदत्तात्रेयप्रभुजी उसे मना करते रहे यह क्या ? तुम ऋषिपुत्र हो, और हम पारधी हैं । यह कहकर श्रीदत्तात्रेयप्रभुजी बारबार निराकरण करते रहे । परशुराम विनीत भावसे प्रार्थना करता रहा । श्रीदत्तात्रेयप्रभुजी विनती स्वीकार नहीं कर रहे थे । साथमें जो आउसा थीं उन्होेंने विनतीकी तब श्रीदत्तात्रेयप्रभुजीने परशुरामकी प्रार्थना स्वीकार की । उसके पश्चात श्रीदत्तात्रेयप्रभुजीने कहा ' परशुराम एकवीराको स्नान करानेके लिए सर्व तीर्थोंसे जल लाना होगा ।' परशुरामने विनती की ' जी जी! आपके श्रीचरणोंमें ही सर्वतीर्थ हैं । '
तब श्रीदत्तात्रेय प्रभु जी ने एक स्थान पर चिन्ह लगाया और परशुराम से कहा ' यहाँ बाण मारो ।' परशुराम द्वारा बाण मारे जाने पर वहाँसे निर्मल पानीका झरना फूट पड़ा । श्रीदत्तात्रेय प्रभु जी ने उसमें अपने श्रीचरणका अंगूठा प्रक्षालन किया । इस प्रकार उस जल को सर्वतीर्थका महत्व प्राप्त करा दिया । श्री दत्तात्रेय प्रभु जीकी आज्ञासे परशुरामने उस पवित्र जल से माता एकवीराको स्नान कराया । फिर उनकी आज्ञा और आचार्यत्वमें कोरीभूमिमें माता एकवीराका अंतिम संस्कार कराया । श्री दत्तात्रेय प्रभु जी ने उस स्थान पर एक पाषाण रखवाकर सुरा(मद्य)से उसका अभिषेक (स्नान) किया और माँसका उपहार लिखाया । उस पाषाण प्रतिमाको ' भोग पाव ' (तेरा पूजन अर्चन होता रहे ) यह वर दिया।
महदाईसाजीने पूछा ' जी जी ! साथमें जो आउसा थी वह कौन थी ? ' श्रीस्वामीजीने कहा वह परमेश्वरकी मुख्य शक्ति मायामूर्ति थी।
जय श्री दत्तात्रेय प्रभु जी

🙏 जय श्री कृष्ण जी 🙏