म्हाइंमभट्ट जी का अहंभाव दूर करना

🙏 Dandvat Pranam 🙏

जय श्री गोविंद प्रभु राया
एकदिन म्हाइंभट्ट जी ने सर्वज्ञ श्री गोविंद प्रभु जी के लिए अच्छा उपहार तैयार करवाया । तैल मर्दन, स्नानादि क्रियाके पश्चात श्रीप्रभु सर्वज्ञ को बहुमूल्य वस्त्र पहनाया गया । प्रसन्नतावश उस किमती बहुमूल्य वस्त्रको पहने सर्वज्ञ आनंदसे आगनमें इधर-उधर घुम रहे थे, तो सर्वज्ञ श्रीगोविंदप्रभुबाबाकी प्रसन्नता देखकर *म्हाइंमभट्टजीको अहंभाव जागृत हो उठा की यह मैं ही म्हाइंमभट्ट हूं, जीसका इतना बहुमूल्य किमती वस्त्र श्रीप्रभुबाबा स्वीकार कर रहे है !!! घट घटके जाननहार सर्वज्ञ श्रीप्रभुबाबासे भला म्हाइंमभट्टके मनमें जागृत हुई इस अहंभावना कैसे छुपी रह सकती। उसे जान तत्काल उस वस्त्र उतार सर्वज्ञ श्रीप्रभुबाबाने दूसरा वस्त्र पहन लिया, और उस वस्त्र पर पाद प्रहार कर बोले- अरे पगले व्यर्थमें ही इसकी बड़ाई कर रहा है! इसे अभी हम फाड देंगे!' कहकर उस वस्त्रको इधर-उधर घसीटने लगे। उस समय श्रीसर्वज्ञके सन्मुख जानेकी कीसीको हिम्मत नहीं हो रही थी जिससे उन्हें विनंतीकी जाय। तब श्रीआचार्यजीने म्हाइंमभट्टजीसे पूछा, ' म्हाइंमभट्ट! क्या तुमने मनमें कोई कल्पना तो नहीं की ?' उत्तरमें म्हाइंमभट्टजी बोले, ' हां ! आचार्य! मैंने वस्त्र के संबंधमें कल्पना कर संतोष अनुभव कर रहा था।
आचार्यजी समझाते हुए बोले, 'भट्टजी, हम जीवोंके पास है ही क्या, जो हम परमेश्वरको समर्पित कर सकें? तुमने किया ही क्या था? की मनमें इतना संतोष मान बैठे? अब सर्वज्ञ श्रीप्रभुबाबासे क्षमा माँगते नमस्कार डालीये !!!!! ।
तब म्हाइंमभट्टजीने साष्टांग नमस्कार डालते आर्तभरे स्वरमें सर्वज्ञ श्रीप्रभुबाबासे क्षमा माँगते प्रार्थना करते विनंती की- 'हे भगवन् मैं अपराधी हूं, मैंने अहंभाववश मनमें व्यर्थकी कल्पना की थी, मेरे इस अपराधके लिए मुझे क्षमा किजीये श्रीप्रभु राया। आपके सम्मुख वह वस्त्र है ही क्या? किंतु! अज्ञानतावश मैं यह जान ही न सका । मेरी यह अबुधताके लिए मुझे क्षमा किजिए !!!!!' यह कहकर वे रो पडे तो करुणाधन सर्वज्ञ श्रीप्रभु राया का दिल पसीज उठा । प्रसन्न होकर श्रीराया बोले,' अरे पगले! उठ जा ! उठ जा, जल्दी, क्यों नहीं उठ रहा ! पगले! अब तो तुम मेरे और भी अधिक प्रिय बन गये हो!
म्हाइंमभट्टजी उठकर वह वस्त्र ले आये तो सर्वज्ञ श्रीप्रभुरायाने उसको पुनः पहन लिया। कुछ दिनोंतक श्रीप्रभुबाबाके पहननेके पश्चात म्हाइंमभट्टजीने उस वस्त्र को धोनेके लिए दे दिया । उसके पश्चात सर्वज्ञ श्रीप्रभुराया उस वस्त्रको प्रतिदिन पहनते ही रहे।
भूल क्षमाप्रार्थी - जय श्री प्रभुरायार्पणम्।

🙏 जय श्री कृष्ण जी 🙏

🙏 दंडवत प्रणामनमो पंच कृष्ण अवतार

  • Author: Dandvat
  • Posted on: October 22, 2023 6:00 PM
  • Tags: Leela, Shree Govind Prabhu, Shree Chakrdhar Swami, Panch Krishan Avatar

लाहीभट्टकी श्रवणजिज्ञासा
🙏 Dandvat Pranam 🙏

जय श्री चक्रधर स्वामी जी
एक दिन लाहीभट्ट श्रीचक्रधर स्वामीजीके दर्शनोंको आया । प्रणाम करनेके उपरांत उसने भगवानसे कुछ सुननेकी प्रार्थना की । भगवान् बोले, ' लाहीभट्ट, अपने मनमें धारण किये देवताविषयक सकाम कर्मोंको भुला देनेपर ही तुम हमारे उपदेशके वास्तविक अधिकारी बन सकते हो । उनके रहते ईश्वरीय ज्ञानकी प्राप्ति दुर्लभ है।'
लाहीभट्ट बोला, 'महाराज! देवताभक्त ईश्वरीय ज्ञानको धारण क्यों नही कर सकता ? उसमें भी तो कर्मकांड पर अटूट श्रद्धा रहती है ।'
भगवानने समझाते हुए कहा, 'भट्ट! कोरा कर्मकांड मुक्ति नहीं दिला सकता । उससे तो केवल देवताओंके सुखफल ही प्राप्त हो सकते हैं । ईश्वरीय ज्ञानके लिये तो मनुष्यको एकनिष्ठ होना परम आवश्यक है ; क्योंकि जैसे एक मनुष्यके ठहरने पर उस स्थान पर दूसरा मनुष्य नहीं ठहर सकता, वैसे ही देवताविषयक अथवा सांसारिक कामनाओंसे ठसाठस भरे हुए हृदयमें ईश्वरीय ज्ञान चिरंतन कालतक ठहर नहीं सकता ।'
सूत्र : वि. बाइः बिढारावरि काइ बिढारु असे ।।२६४ ।।
श्रीचक्रधरार्पणम्
जय चक्रपाणि महाराज जी

🙏 जय श्री कृष्ण जी 🙏
सबको अपने जैसा जानो
🙏 Dandvat Pranam 🙏

जय श्री चक्रधर स्वामी जी
नियमानुसार एक दिन आश्रमकी देखभाल आउसा कर रही थी । एक कुत्तेको आया देखकर उसने उसे पत्थर मारा । पत्थर लगते ही कुत्ता चिल्लाता हुआ पूँछ दबाकर बाहरकी ओर भाग गया । कुत्तेका रोना था कि उधर भगवान् दोनों हाथोंमें अपना मस्तक थामकर बैठ गये ।
भगवानको श्रीमुकुट थामे देख आउसाका रंग उड गया । वह भागकर उनके पास जा पहुँची । उसने अकुलाकर खिन्न मनसे पूछा - 'महाराज! मैंने मारा तो कुत्तेको है, आप कयों मस्तक थामकर बैठ गये हैं ?'
भगवानने समझाया - 'आउसा ! ईश्वरस्वरूप सर्वत्र व्यापक है। किसी जीव पर किये प्रहारका इसीलिये वह अनुभव करता है। तुमने उस प्राणीको पत्थर मारा, उसकी पीड़ा हमें हुई, इसीलिए हमने मस्तक थाम लिया।' फिर उन्होंने कुछ थमकर पूछा - 'बताओ तो तुमने उसे मारा कयों है ?'
आउसाने उत्तर दिया, 'महाराज! कल यही कुत्ता नागदेवके भिक्षान्नकी झोली उठा ले गया था । आज यह पुनः कुछ उठानेकी नीयतसे आया था । यदि मैं इसे न मारती, तो यह अवश्य ही आज भी कुछ ले भागता । अतः मैंने उसे समुचित दंड दिया है , तो कोई अपराध नहीं किया ।'
भगवानने कहा, 'आउसा ! मनुष्यके समान इसे पकाकर खिलानेवाला तो कोई है नहीं, जहाँ जाकर यह आरामसे खायेगा । इस बेचारेने तो इसी तरह घूम-फिरकर पेट भरना है । तुम अपनी चीजोंको सम्भालकर रखो, उसके लिए इसे क्यों दंडित करती हो ? यह तो खुद तुम्हारा दोष है । इस तरह वस्तुओंको असुरक्षित रखोगी, तो यह तो मुँह मारेगा ही ।'
भगवानके उदात्त विचारोंके आगे आउसा नतमस्तक हो गई और उसने *अपने अपराधकी क्षमा माँगकर पुनः वैसा न करनेकी प्रतिज्ञा ली।
जय श्री चक्रधर जी

🙏 जय श्री कृष्ण जी 🙏